तो करता कुछ
मैं भरोसे के लायक नहीं
हाँ मैं कोई नायक नहीं
हल पल राहत में रहता
जो तू दर्द ना सहता
जब -जब खुद को नज़रंदाज़ करोगे
यूँही दर्द बन आँखों से बहोगे
ऐसा ही नज़ारा हुआ करता है
जब तू हमसे रूठ जाया करता है
प्यार की डोर जो हमने बाँधी है
उसने ना जाने रोकी कितनी आंधी हैं
तन्हा होते तो क्या खुद को यूँ समझ पाते
कितना प्यार है तुमसे काश हम कह पाते