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हिसाब मांगती थी चूड़ियाँ तुम्हारी
जवाब चाहती थी बिंदिया तुम्हारी
हम सोचते थे बस तुम हो हमारे
क्या जानते थे
हम हो चुके थे तुम्हारे
तेरी याद में भूल रहा हूँ
भूला रहा हूँ खुद ही को
आस तुम्हीं से बान्ध रहा हूँ
बस तुम्हारी खातिर जाग रहा हूँ
अनजाने सपनों के पीछे भाग रहा था
कैसे लड़खड़ाते कदमों को संभाल रहा था
साथ ने तुम्हारे हमें इत्मिनान दे दिया
कर्मों को मेरे अंजाम दे दिया
shayari ki dukan
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